चीन-अमेरिका नहीं आएगा काम! एस जयशंकर ने मालदीव जाकर बांग्लादेश को भी दिया बड़ा संदेश

भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले मालदीव के चीन समर्थक राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अब बैकफुट पर हैं। मालदीव के बुलावे पर ही माले पहुंचे विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ उन्होंने मुलाकात की और भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। मुइज्जू ने कहा कि वह ऐसा कुछ भी नहीं होने देंगे जो कि मालदीव के हितों और विदेश नीति के खिलाफ हो।

दरअसल मोहम्मद मुइज्जू से सवाल किया गया था कि क्या वह ‘इंडिया आउट’ अभियान को आगे बढ़ाएंगे। दरअसल चुनाव प्रचार के दौरान ही मुइज्जू ने इंडिया आउट का नारा दिया था। चुनाव के बाद पीएनसी-पीपएम की गठबंधन सरकार बनी। सवाल के जवाब में मुइज्जू ने कहा कि वह देश की विदेश नीति को नहीं बदलने वाले हैं। बता दें कि मुइज्जू ने यह बयान विदेश मंत्री एस जयशंकर के रवाना होने के बाद दिया। दो दिनों के दौरे के बाद जयशंकर भारत के लिए रवाना हो गए थे।

चीन से कैसे हो गया मोहभंग

पिछले साल नवंबर में मुइज्जू के शपथ ग्रहण के बाद से ही भारत और मालदीव के रिश्ते में भी ग्रहण लगने शुरू हो गए थे। हालांकि ये समय ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और मालदीव का चीन से मोहभंग हो गया और भारत की अहमियत समझ में आ गई। विदेश मंत्री एस जयशंकर का मुइज्जू और उनके मंत्रियों ने बढ़-चढ़कर स्वागत किया। इसके पीछे मालदीव की अर्थव्यवस्था बड़ी वजह है। दरअसल भारत का विरोध करके उसे पर्यटन के क्षेत्र में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। दूसरी तरफ चीन बिना अपने फायदे के मालदीव की मदद करने को तैयार नहीं हुआ।

दरअसल मालदीव भारत का पहले से ही कर्जदार है। साल के अंत तक मालदीव पर भारत का लगभग 400 मिलयन डॉलर बकाया है। लगभग 50 मिलियन डॉलर चुकाने का समय मई में ही था। वहीं सितंबर में 50 मिलयन डॉलर की मियाद फिर पूरी हो रही है। वहीं मोदी सरकार ने पड़ोसी प्रथम की नीति को बनाए रखा है और इसलिए मालदीव की मदद करन के लिए प्रतिबद्ध है।

मालदीव के हालात, बांग्लादेश के लिए भी सीख

मालदीव के जो हालात हैं वे बांग्लादेश के लिए भी बड़ी सीख हैं। पड़ोसी देशों की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था की मदद के लिए भारत हमेशा आगे आया है। ऐसे समय में चीन, अमेरिका और पश्चिमी देश या तो अपना फायदा तलाशने लगते हैं और फायदा ना मिलने पर हाथ खड़े कर देते हैं। मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू ने भी तुर्की, चीन और मध्य एशिया के देशों से मदद मांगी थी।

बांग्लादेश में इन दिनों राजनीतिक उथल-पुथल चल रही है और हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भी गड़बड़ है और उसे भारत से ही मदद लेनी पड़ेगी। मालदीव को असलियत पता चल गई है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों को बढ़ावा देना मालदीव के हित में नहीं है। इसीलिए एस जयशंकर का इब्राहिम सोलेह की सरकार से भी ज्यादा जोरदार स्वागत किया गया। यह पड़ोसी देशों के लिए बड़ा संदेश है कि भारत से विरोध मोल लेना उनके हित में नहीं है।

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